Saturday, July 18, 2015

-.- तांडव -.-

  

हर आँख हुई है नम
हर आँख में पड़ गए
आंसू कम
मांगी थी तुझ से
अपनों की ख़ुशी
तूने दे दिए
ज़िन्दगी भर के गम
खंड खंड हुए पहाड़
कैसा महाकाल
विकराल
किया ये तांडव
सदियों से
पहाड़ सरीखी
अथाह -अचल
मेरी आस्था पड़ गयी कम
तेरे होते तेरे दर पे
कैसा ये
शमशान सा मंज़र
मांगे सूनी गोदें बंजर
डूबा चाँद किसी का
बिछड़ा किसी के
आँचल से
आँखों का तारा
मुझको यकीं था
तू यहीं कहीं है
जब छूटा था
रूह से तन का नाता
जब मै दफ़न हुआ
सैलाब में तेरे
भरम कुछ तो
दुनिया के लिए
रख छोड़ा होता
डूबी जब सारी दुनिया मेरी
तू भी तो संग मेरे डूबा होता!

--- सुदेश भट्ट ---

(2013 केदारनाथ में आयी प्रलय आपदा में मारे गए लोगों को समर्पित )

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