वजूद मेरा टूट कर
ज़र्रा ज़र्रा रेत की तरह बिखर गया
जो था ख़ुशी का सबब
जहाँ भर का गम वही दिल में भर गया
न आई रास मुझको
कुछ अपनों की मेहरबानियाँ
गेरों को भी कुछ
मेरा मुस्कराना शायद अखर गया
ज़ख़्म रिसते रहे
खामोशियाँ सिसकती रही
वो मेरा फिक्रमंद
हमदम जाने किधर गया
दुनिया से कर दिया था
मुझको जिसने बेगाना
वो जूनून
बरसात के दरिया सा धीरे धीरे उतर गया !
-----सुदेश भट्ट ------
ज़र्रा ज़र्रा रेत की तरह बिखर गया
जो था ख़ुशी का सबब
जहाँ भर का गम वही दिल में भर गया
न आई रास मुझको
कुछ अपनों की मेहरबानियाँ
गेरों को भी कुछ
मेरा मुस्कराना शायद अखर गया
ज़ख़्म रिसते रहे
खामोशियाँ सिसकती रही
वो मेरा फिक्रमंद
हमदम जाने किधर गया
दुनिया से कर दिया था
मुझको जिसने बेगाना
वो जूनून
बरसात के दरिया सा धीरे धीरे उतर गया !
-----सुदेश भट्ट ------