Wednesday, March 16, 2011

सबब

वजूद मेरा टूट कर
ज़र्रा ज़र्रा रेत की तरह बिखर गया
जो था ख़ुशी का सबब
जहाँ भर का गम वही दिल में भर गया
न आई रास मुझको
कुछ अपनों की मेहरबानियाँ
गेरों को भी कुछ
मेरा मुस्कराना शायद अखर गया
ज़ख़्म रिसते रहे
खामोशियाँ सिसकती रही
वो मेरा फिक्रमंद
हमदम जाने किधर गया
दुनिया से कर दिया था
मुझको जिसने बेगाना
वो जूनून
बरसात के दरिया सा धीरे धीरे उतर गया !


-----सुदेश भट्ट ------