Saturday, September 18, 2010

फासले

वक़्त की गर्दिश में

ये भी अहसास हुए

तुम पहले दूर से करीब

और फिर पास से बहुत दूर हुए

केसा है चलन

देखो उल्टा जमाने का

हम तुम में और

तुम खुद में मसरूफ हुए

आदत सी हो गई तेरी

खुद के बनाए इन सिलसिलों में कही

मेरे सफ़र को थी तन्हाई की तलाश

तुम खोये रहे काफिलों में कहीं

मेरी हर साँस ने तुझे ढूंढा

मेरे हर पल ने तेरी कमी महसूस की

तेरे मेरे दरमियाँ कुछ तो है

कभी ख़तम न होने वाले

ये फासले ही सही

--सुदेश भट्ट ---

Wednesday, September 1, 2010

आओ

आओ तुम्हारी खुबसूरत आँखों की

आज फिर बात करें

बेनूर बहुत है ये दुनिया

आओ आज कुछ नूर की बात करें

जो पल में गुजर गए

आओ उन लम्हों की बात करें

जब तुम अपने से लगे थे

आओ उन दिनों के बेगानेपन की बात करें

तुमने किये मैंने समझे

जो मैंने किये तुम नहीं समझे

आओ उन इशारों की बात करें

जो जर्रे जर्रे में बस गई

आओ तुम्हारी उस खुशबू की बात करें

जो कर गई हर शय को खुशनुमा

तुम्हारी उस मुस्कराहट की बात करें

है रात अँधेरी तो क्या अंधेरों से उजाले की बात करें

आओ तुम को सोचें और चाँद की बात करें


--सुदेश भट्ट---