वक़्त की गर्दिश में
ये भी अहसास हुए
तुम पहले दूर से करीब
और फिर पास से बहुत दूर हुए
केसा है चलन
देखो उल्टा जमाने का
हम तुम में और
तुम खुद में मसरूफ हुए
आदत सी हो गई तेरी
खुद के बनाए इन सिलसिलों में कही
मेरे सफ़र को थी तन्हाई की तलाश
तुम खोये रहे काफिलों में कहीं
मेरी हर साँस ने तुझे ढूंढा
मेरे हर पल ने तेरी कमी महसूस की
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ तो है
कभी ख़तम न होने वाले
ये फासले ही सही
--सुदेश भट्ट ---
ये भी अहसास हुए
तुम पहले दूर से करीब
और फिर पास से बहुत दूर हुए
केसा है चलन
देखो उल्टा जमाने का
हम तुम में और
तुम खुद में मसरूफ हुए
आदत सी हो गई तेरी
खुद के बनाए इन सिलसिलों में कही
मेरे सफ़र को थी तन्हाई की तलाश
तुम खोये रहे काफिलों में कहीं
मेरी हर साँस ने तुझे ढूंढा
मेरे हर पल ने तेरी कमी महसूस की
तेरे मेरे दरमियाँ कुछ तो है
कभी ख़तम न होने वाले
ये फासले ही सही
--सुदेश भट्ट ---
4 comments:
AYM... I am ur fan :)
I like ur poems :)
धन्यबाद कुंदन जी! आप को मेरी कवितायेँ पसंद आई जान कर ख़ुशी हुई उत्साहवर्धन हेतु पुनः धन्यबाद :-)
आप जेसे प्रशंसक ही इन कविताओं के वास्तविक जनक है धन्यवाद D :-)
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