Friday, March 4, 2011

कारोबार

कर के फ़ना मेरी हस्ती को
तू जाने तुझको क्या मिला
हम तो कारोबार
छुपा के सबकी नज़रों से
अश्कों का अब करते है
खो के तुझे ढूंडा तो
तू कुछ और मुकम्मल
मुझ में ही मिला
सोचा था करेंगेभूले से भी याद तुझे
देखो ये गुनाह भी अब हम करते है
ताउम्र चुभते है
दिल में खंजर की तरह कुछ रिश्ते
अपनों के दिए ज़ख्मौं कोकोई भी दवा कहाँ फिर भरती हैं
जिन दरख्तों को बेवक्त ही
रास आ जाए मौसम पतझड़ का 
उनकी सूखी शाखौं को फिर  
बहार भी आ कर  
कहाँ हरा करती है

-----सुदेश भट्ट -----