Wednesday, March 16, 2011

सबब

वजूद मेरा टूट कर
ज़र्रा ज़र्रा रेत की तरह बिखर गया
जो था ख़ुशी का सबब
जहाँ भर का गम वही दिल में भर गया
न आई रास मुझको
कुछ अपनों की मेहरबानियाँ
गेरों को भी कुछ
मेरा मुस्कराना शायद अखर गया
ज़ख़्म रिसते रहे
खामोशियाँ सिसकती रही
वो मेरा फिक्रमंद
हमदम जाने किधर गया
दुनिया से कर दिया था
मुझको जिसने बेगाना
वो जूनून
बरसात के दरिया सा धीरे धीरे उतर गया !


-----सुदेश भट्ट ------

Friday, March 11, 2011

दुनिया

दुनिया तेरी
इनायतों से दिल अब मेरा भर गया
मै जिंदा हूँ
मगर मेरे अन्दर का इंसान मर गया
आया था
बड़ी ति॰शनगी लेकर मै सेहराँ से
देख कर
खारापन समन्दर का 
प्यासा ही गुज़र गया
अच्छा हुआ
जो बेअदब ये दिल टूट गया
चलो इस बहाने से
तहज़ीब ए गमे इश्क तो सीख गया !


-----सुदेश भट्ट -----

Friday, March 4, 2011

कारोबार

कर के फ़ना मेरी हस्ती को
तू जाने तुझको क्या मिला
हम तो कारोबार
छुपा के सबकी नज़रों से
अश्कों का अब करते है
खो के तुझे ढूंडा तो
तू कुछ और मुकम्मल
मुझ में ही मिला
सोचा था करेंगेभूले से भी याद तुझे
देखो ये गुनाह भी अब हम करते है
ताउम्र चुभते है
दिल में खंजर की तरह कुछ रिश्ते
अपनों के दिए ज़ख्मौं कोकोई भी दवा कहाँ फिर भरती हैं
जिन दरख्तों को बेवक्त ही
रास आ जाए मौसम पतझड़ का 
उनकी सूखी शाखौं को फिर  
बहार भी आ कर  
कहाँ हरा करती है

-----सुदेश भट्ट -----

Wednesday, March 2, 2011

इंसान



कुछ देर से सही
चेहरे पे तुम्हारे भी
एक चेहरा चस्पा निकला
आसान नहीं फ़रिश्ता बनना
इंसानों सा आखिर
तुम्हारी भी फितरत का 
किस्सा निकला
मतलब से बाबस्ता
इंसान का इंसान से रिश्ता
क्या फर्क पड़ता है
तू सच्चा है या झूठा
अपनी अपनी राय है
अपना अपना मुद्दा
हम कैसे और क्यों अब
तुम्हारे मेहरम होते
हम ठहरे इंसान और तुम
कहते हो अपने को   ख़ुदा !



-----सुदेश भट्ट ------