जाता क्यों नहीं ,
तू मुझको फिर से
रुलाता क्यों नहीं.
कब तक सहूँ
तेरी ज़ुल्मतो के वही करम ,
तू मुझ पे कोई
नया सितम ढाता क्यों नहीं.
नम आँखों से मेरी
बहने लगें अश्क ,
तू मुझको
कभी इतना हंसाता क्यों नहीं.
जो हर रोज मैं
लाख जतन से छुपाता हूँ,
वो तुझको
कभी नज़र आता क्यों नहीं.
कितना भी हूँ
दूर तुमसे मैं लौट आऊंगा,
तू मुझको
शिद्द्त से कभी बुलाता क्यों नहीं
--सुदेश भट्ट---