दिल की ये बेचेनियाँ
अनबुझी सी ये
जिंदगी की पहेलियाँ
उलझी उलझी सी
हर उलझन
खुद से ही
ये रोज़ की अनबन
बेतरतीब सा
क्यों हो गया है
छोड़ के सलीका
ये मेरा मन
-----सुदेश भट्ट ------
अनबुझी सी ये
जिंदगी की पहेलियाँ
उलझी उलझी सी
हर उलझन
खुद से ही
ये रोज़ की अनबन
बेतरतीब सा
क्यों हो गया है
छोड़ के सलीका
ये मेरा मन
-----सुदेश भट्ट ------