दर्द को पी गया
देके खुद को फरेब
देख मैं फिर
मुगालतों में जी गया
आह निकली तो थी
दिल से मेरे
गौर तलब है
की मेरे खुदा
तू अनसुना कर गया
आखरी मेरी ख्वाहिशों में
था तेरा नाम
ये अलग बात है
आखरी वक़्त में
अपने होंठो को मैं सी गया
रजिशों में भी तेरी
थी कोई बात
की मैं तुझको
खेर मकदम अपना कह गया
--सुदेश भट्ट ---