Wednesday, November 10, 2010

दर्द

दर्द को पी गया

देके खुद को फरेब

देख मैं फिर

मुगालतों में जी गया

आह निकली तो थी

दिल से मेरे

गौर तलब है

की मेरे खुदा

तू अनसुना कर गया

आखरी मेरी ख्वाहिशों में

था तेरा नाम

ये अलग बात है

आखरी वक़्त में

अपने होंठो को मैं सी गया

रजिशों में भी तेरी

थी कोई बात

की मैं तुझको

खेर मकदम अपना कह गया

--सुदेश भट्ट ---

2 comments:

Anamikaghatak said...

अच्छी प्रस्तुति

Sudesh Bhatt said...

आपने कविता पढ़ी और प्रतिक्रिया दी,धन्यबाद ...