बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
मन व्याकुल
भ्रमित
मृग मरीचिका सा
तन आकुल
साये को मरुस्थल सा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
आते हैं याद
अधर तुम्हारे
जो कहते थे
मधुर
प्रेम की गाथा
ढूढ़ती हैं आँखे मेरी
मतवारे कारे
नैन तुम्हारे
जो पढ़ते थे
अनगढ़ अनकही
प्रीत की मेरी भाषा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
तन मन झुलसा
विरह आग में
पात पात मुरझाया
गात हुआ
पतझड़ की
तरु शाख सा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
जीवन
मरूभूमि की सी
तपती रेत हुआ
दामन
अश्के तर से
झेलम चिनाब हुआ
छत की मुँडेर पे बैठे
तनहा पंछी सा
मन तेरे बिन रोज़
उदास हुआ ।
--- सुदेश भट्ट ---
मन व्याकुल
भ्रमित
मृग मरीचिका सा
तन आकुल
साये को मरुस्थल सा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
आते हैं याद
अधर तुम्हारे
जो कहते थे
मधुर
प्रेम की गाथा
ढूढ़ती हैं आँखे मेरी
मतवारे कारे
नैन तुम्हारे
जो पढ़ते थे
अनगढ़ अनकही
प्रीत की मेरी भाषा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
तन मन झुलसा
विरह आग में
पात पात मुरझाया
गात हुआ
पतझड़ की
तरु शाख सा
बिन तेरे
क्या हाल हुआ
क्या तुमको बतलाऊं
जीवन
मरूभूमि की सी
तपती रेत हुआ
दामन
अश्के तर से
झेलम चिनाब हुआ
छत की मुँडेर पे बैठे
तनहा पंछी सा
मन तेरे बिन रोज़
उदास हुआ ।
--- सुदेश भट्ट ---