मेरे आस पास झूट का दलदल है,
मैं उसमें लम्हा-लम्हा डूब रहा हूँ !
जितना भी हाथ-पांव मारता हूँ
और कुछ अन्दर धंस जाता हूँ !
मेरे आस पास आहिस्ता आहिस्ता,
लोगों का भंवर बनता जा रहा है !
याहूमेल, जीमेल , ऑरकुट,
फेसबुक,ट्वीटर ,
और मैं कई टुकडों में बंटता बिखरता जा रहा हूँ !
लेकिन क्या करू समय के साथ चलने की होड़ में ,
मैं भी दोड़ में शामिल हूँ
वक़्त धीरे-धीरे रेत की तरह
हाथ से फिसलता जा रहा है!
यूजर नेम, पास वर्ड, स्क्रेप्बुक,वॉल .कमेन्ट
इन्बौक्स, रिप्लाई में उलझता जा रहा हूँ ,
अपने आप को
अपने दोस्तों को अपने समय को खोता जा रहा हूँ !
-----सुदेश भट्ट -------
Monday, June 29, 2009
वो जो था
वो जो था मै नहीं था ,
मुझ मे ही कोई दूसरा शख्श छुपा था,
जिस को मै पहचान नहीं पाया,मेरा ही अक्श छुपा था!
हकीकत को समझने मे बड़ी देर लगी,
उसको यकीं नहीं होता वो अपनी पूरी जिन्दगी
परछायियो के पीछे भागता रहा था!
रफ्फ्ता-रफ्फ्ता जब उसे चेहरे पढ़ने का हुनर आया,
अपनी कमजोर निगाहों से खोया सा हुआ
हर चेहरे मै वो जाने क्या ढूँढ रहा था!
थक के गहरी नींद सोने से पहले,
वो ज़िन्दगी से पूरी ताकत से लड़ा था!
वक्ते रुखसत कोई साथ नहीं था ,
यूं तो पूरी उम्र वो सबको लेके साथ चला था!
------ सुदेश भट्ट ------
मुझ मे ही कोई दूसरा शख्श छुपा था,
जिस को मै पहचान नहीं पाया,मेरा ही अक्श छुपा था!
हकीकत को समझने मे बड़ी देर लगी,
उसको यकीं नहीं होता वो अपनी पूरी जिन्दगी
परछायियो के पीछे भागता रहा था!
रफ्फ्ता-रफ्फ्ता जब उसे चेहरे पढ़ने का हुनर आया,
अपनी कमजोर निगाहों से खोया सा हुआ
हर चेहरे मै वो जाने क्या ढूँढ रहा था!
थक के गहरी नींद सोने से पहले,
वो ज़िन्दगी से पूरी ताकत से लड़ा था!
वक्ते रुखसत कोई साथ नहीं था ,
यूं तो पूरी उम्र वो सबको लेके साथ चला था!
------ सुदेश भट्ट ------
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