वो जो था मै नहीं था ,
मुझ मे ही कोई दूसरा शख्श छुपा था,
जिस को मै पहचान नहीं पाया,मेरा ही अक्श छुपा था!
हकीकत को समझने मे बड़ी देर लगी,
उसको यकीं नहीं होता वो अपनी पूरी जिन्दगी
परछायियो के पीछे भागता रहा था!
रफ्फ्ता-रफ्फ्ता जब उसे चेहरे पढ़ने का हुनर आया,
अपनी कमजोर निगाहों से खोया सा हुआ
हर चेहरे मै वो जाने क्या ढूँढ रहा था!
थक के गहरी नींद सोने से पहले,
वो ज़िन्दगी से पूरी ताकत से लड़ा था!
वक्ते रुखसत कोई साथ नहीं था ,
यूं तो पूरी उम्र वो सबको लेके साथ चला था!
------ सुदेश भट्ट ------
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
2 comments:
its nicce is se bachapan ki yaad aa gai bahoot acha laga aapki kavita padh kar
खुशी हुई जान कर की आपको मेरी कवितायें अच्छी लगी, धन्यबाद सोनाली जी
Post a Comment