Friday, March 5, 2010

सूत्रधार

मुझको मुस्कराने दो फूलों की तरह

मुझको गुनगुनाने दो भवरों की तरह

मुझको इठलाने दो तितलियों की तरह

मुझको बल खाने दो नदियों की तरह

मुझको उड़ जाने दो हवाओं की तरह

मुझको झिलमिलाने दो सितारों की तरह

मुझको पल्वित होने दो कुसुम लतावों की तरह

मुझको धरा पे आने दो बहारों की तरह

मैं ही माँ हूँ मैं ही बहन हूँ

मैं ही प्रियतमा भी हूँ

मै ज़िंदगी का आधार हूँ

आनेवाले कल की सूत्रधार हूँ

होने दो इस बसुन्धरा पे

मुझको भी साकार

न मुझ से छीनो मेरा ये हक़

मैं गर्भ मे ले रही आकार हूँ


----- सुदेश भट्ट -----

No comments: