मुझको मुस्कराने दो फूलों की तरह
मुझको गुनगुनाने दो भवरों की तरह
मुझको इठलाने दो तितलियों की तरह
मुझको बल खाने दो नदियों की तरह
मुझको उड़ जाने दो हवाओं की तरह
मुझको झिलमिलाने दो सितारों की तरह
मुझको पल्वित होने दो कुसुम लतावों की तरह
मुझको धरा पे आने दो बहारों की तरह
मैं ही माँ हूँ मैं ही बहन हूँ
मैं ही प्रियतमा भी हूँ
मै ज़िंदगी का आधार हूँ
आनेवाले कल की सूत्रधार हूँ
होने दो इस बसुन्धरा पे
मुझको भी साकार
न मुझ से छीनो मेरा ये हक़
मैं गर्भ मे ले रही आकार हूँ
----- सुदेश भट्ट -----
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