Thursday, November 19, 2009

नादान

कभी नादान रहा कभी अनजान रहा

कभी मसरूफ रहा कभी मगरूर रहा

कभी याद किया कभी भूल गया

कभी हँसता आया कभी रोता आया

कभी कुछ पा के आया

कभी सब कुछ खो के आया

कभी शुक्रिया कभी शिकवा करने आया

जब भी मैं तेरे दर पे आया

मैं ने ही कहा मैं ने ही सुना

तू मुझ मे ही छुपा था कहीं ऐ मेरे खुदा !


----- सुदेश भट्ट -----

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