कभी नादान रहा कभी अनजान रहा
कभी मसरूफ रहा कभी मगरूर रहा
कभी याद किया कभी भूल गया
कभी हँसता आया कभी रोता आया
कभी कुछ पा के आया
कभी सब कुछ खो के आया
कभी शुक्रिया कभी शिकवा करने आया
जब भी मैं तेरे दर पे आया
मैं ने ही कहा मैं ने ही सुना
तू मुझ मे ही छुपा था कहीं ऐ मेरे खुदा !
----- सुदेश भट्ट -----
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