Wednesday, March 2, 2011

इंसान



कुछ देर से सही
चेहरे पे तुम्हारे भी
एक चेहरा चस्पा निकला
आसान नहीं फ़रिश्ता बनना
इंसानों सा आखिर
तुम्हारी भी फितरत का 
किस्सा निकला
मतलब से बाबस्ता
इंसान का इंसान से रिश्ता
क्या फर्क पड़ता है
तू सच्चा है या झूठा
अपनी अपनी राय है
अपना अपना मुद्दा
हम कैसे और क्यों अब
तुम्हारे मेहरम होते
हम ठहरे इंसान और तुम
कहते हो अपने को   ख़ुदा !



-----सुदेश भट्ट ------

2 comments:

Hemant said...

wah wah , good one sachhai likhte hain aap !

Sudesh Bhatt said...

शुक्रिया हेमंत जी