कुछ देर से सही
चेहरे पे तुम्हारे भी
एक चेहरा चस्पा निकला
आसान नहीं फ़रिश्ता बनना
इंसानों सा आखिर
तुम्हारी भी फितरत का
किस्सा निकला
मतलब से बाबस्ता
इंसान का इंसान से रिश्ता
क्या फर्क पड़ता है
तू सच्चा है या झूठा
अपनी अपनी राय है
अपना अपना मुद्दा
हम कैसे और क्यों अब
तुम्हारे मेहरम होते
हम ठहरे इंसान और तुम
कहते हो अपने को ख़ुदा !
-----सुदेश भट्ट ------
2 comments:
wah wah , good one sachhai likhte hain aap !
शुक्रिया हेमंत जी
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