Wednesday, August 19, 2009

मै


मै अपने आप से ऊब गया हूँ

थोड़ा इसके जैसे थोड़ा उसके जैसे बनते बनते

ख़ुद से कही दूर निकल गया हूँ!

अनगिनत तेज चलते कदम, पीले चेहरे झुके कंधो पे रखे हुए

एक दुसरे से आगे निकलने की कोशिश मे गिरते पड़ते हुए

दुर्घटनाओ के शहर मे, साजिशो के तार बुनते हुए

असमंजस के झूले मे झूल रहा हूँ

थोड़ा बुरा थोड़ा भला बनते बनते

ख़ुद से कही दूर निकल गया हूँ!

बंद दरवाजो के पीछे चीखते चिल्लाते हुए

रात को अंधेरे कोनो मे दबी जुबान मे फुसफुसाते हुए

सच को झूट की सलीब पे छटपटाते हुए

रिश्तों की बुनियाद को हैवानियत से ढहाते हुए

मै अपने आप से बिछड़ गया हूँ

इस भीड़ मे अपना वजूद तलाशते हुए

ख़ुद से कही दूर निकल गया हूँ !

------ सुदेश भट्ट -------

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