Saturday, July 3, 2010

तुम

रिमझिम रिमझिम

तपते जून की दोपहर में बरसती बरखा सी हो तुम

सर्दियों की धूप में

हवाओं में झूमती खिली खिली सरसों के फूलों सी हो तुम

सावन की पहली बारिश में भीगी

गांव की मिटटी की सोंधी सोंधी ख़ुशबू सी हो तुम

अल्हड बल खाती अनजान डगर पे

अपनी ही धुन में

बहती नदिया की रवानगी सी हो तुम

किसी कवि के

कोमल ख्यालों में उपजी

एक खुबसूरत कविता सी हो तुम

बोलती आँखों से

कहे गए खामोश अफ़साने सी हो तुम

कभी मेरे मन का सकून

कभी मेरे दिल की बेकरारी सी हो तुम


------ सुदेश भट्ट ------

5 comments:

संगीता पुरी said...

बोलती आँखों से

कहे गए खामोश अफ़साने सी हो तुम

कभी मेरे मन का सकून

कभी मेरे दिल की बेकरारी सी हो तु
वाह .. बहुत खूब !!

Sunil Kumar said...

सुंदर अभिव्यक्ति ,शुभकामनायें

Sudesh Bhatt said...

संगीता जी ,सुनील जी उत्साहवर्धन हेतु धन्यबाद :)

D said...

:) im speechless :) its beautiful :) all i can do is smile :)

Sudesh Bhatt said...

धन्यबाद D "तुम" आपको पसंद आई मुझे ख़ुशी हुई :) मुस्कराते रहें :D